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सहभागिता (कविता)

यादों के ढेर,
गहराती शाम,
सूखी पंखड़ियों का अहसास,
पियराई आँखों-सा ध्रुव तारा...
इस यात्रा में
बिछड़ते लोग हैं
जो भटकते रहे सारी उम्र
अर्थहीन मंज़िल की तलाश में।

सागर की तलहटी में
डूबकर
कोई मूल्यवान मोती
खोजने की दौड़ थी वह...
मैं भी इस तलाश में
शामिल हो गई थी।


रचनाकार : शैलप्रिया
            

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