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सहनशीलता (कविता)

कैसा जमाना आ गया है
ज्यों ज्यों शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है
हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं,
हमारी सहनशीलता दम तोड़ रही है
हमारी उन्नति की
ये कैसी कहानी कह रही है?
आज हम संभ्रांत हो गए हैं
सहनशीलता को बड़े शान से
अपने से दूर रख रहे हैं।
असभ्यता, उदंडता की नई
तहरीर लिख रहे हैं
तनिक सहनशक्ति के अभाव में
जोश में मदहोश होकर
मारपीट, हिंसा ही नहीं
हत्या और क़त्लेआम तक कर रहे हैं,
जिसकी भारी क़ीमत भी
हम ही चुका रहे हैं।
हमसे लाख अच्छे तो हमारे पुरखे थे
हमारी नज़रों में भले गँवार देहाती थे
पर सहनशीलता में
हमसे कोसों आगे थे,
कम से कम आपा तो नहीं खोते थे,
विचार करके ही आगे बढ़ते थे।
बड़े बड़े विवाद सहनशक्ति के दम पर
बैठे बैठे सुलझा देते थे
आपस में प्रेम भाव के साथ रहते थे।
अपने हों या पराये
बड़े बुज़ुर्गों से नज़रें नहीं मिलाते थे,
उनका मान सम्मान करते थे
परिवार, खानदान की गरिमा का
पूरा ख़्याल रखते थे,
सहनशीलता का साफ़ा सदा
सिर पर बाँधकर रखते थे।


लेखन तिथि : 2 दिसम्बर, 2021
            

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