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सावन महात्म (कविता)

पाँचवाँ माह आया है सावन,
लागे यह सबको मनभावन।
बरस रही है नित वर्षा रानी,
खिली-खिली है कृषि किसानी।
धरती हो गई अब हरी-भरी,
महादेव ने है कृपा करी।
ज्वार बाजरा की हुई बुवाई,
सबने कर दी धान रोपाई।
पानी बरस रहा है रिमझिम-रिमझिम,
मोर नाचते हैं छम-छम-छम-छम।
टर-टर -टर-टर बोलें दादुर दल,
दादा गाएँ गीत आल्हा उदल।
जहाँ भी देखो लगता है बम भोले का नारा,
काँवरियों ने भोले का पाँव पखारा।
नई नवेली दुल्हन जैसी सजी हुई हैं नारी,
ग़ज़ब ढा रहीं हैं पहने हरे रंग की साड़ी।
हाथ में चूड़ी कंगन पाँवों में है पायल,
ख़ूब फबे हैं गोरे गालों संग कान के कुण्डल।
झूल रही हैं सावन में झूला ये सुंदरियाँ,
'भूषण' लगता इंद्रलोक की आई हैं सब परियाँ।


लेखन तिथि : 24 जुलाई, 2022
            

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