तुम्हारे इश्क़ को ही पूजती हूँ,
मगर तक़दीर से मैं जूझती हूँ।
सजाया था कभी जो फूल लव पे,
महक तेरी उसी में सूँघती हूँ।
भले मिल जाए मुझको मौत भी अब,
फ़क़त तुझको हमेशा ढूँढ़ती हूँ।
दिखे जलता भले ही आशियाना,
मगर तुझको कभी ना भूलती हूँ।
तुम्हीं हो रूह की ताक़त तुम्हीं मंज़िल,
तुम्हें मैं ज़िन्दगी में खोजती हूँ।
तुम्हीं फ़रियाद में शामिल रहे हो,
तुम्हें 'सुषमा' ख़ुदा मैं मानती हूँ।
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