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रेत का बिछौना (नवगीत)

लगता है
मरुथल-
रेत का बिछौना।

दूर-दूर
तक नहीं
दिखता है जल।
नज़र नहीं
आ रहे
पंछी के दल।

व्यर्थ है
यहाँ-
हरियाली का बोना।

दिखते केवल
ऊँटों के-
क़ाफ़िले।
इसी टोह में
आबशार-
तो मिले।

वक़्त गोया
मुट्ठी की-
रेत होना।


लेखन तिथि : 15 नवम्बर, 2019
            

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