लगता है
मरुथल-
रेत का बिछौना।
दूर-दूर
तक नहीं
दिखता है जल।
नज़र नहीं
आ रहे
पंछी के दल।
व्यर्थ है
यहाँ-
हरियाली का बोना।
दिखते केवल
ऊँटों के-
क़ाफ़िले।
इसी टोह में
आबशार-
तो मिले।
वक़्त गोया
मुट्ठी की-
रेत होना।
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