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प्रेमवृष्टि (कविता)

आज धरा सौंधी हो गई,
रिमझिम सी बौछार हो गई।
नव अंकुर का जन्म हुआ,
प्रेम युगल में संधि हो गई।

संग में जो पवन चली,
मन में एक हलचल सी मची।
मंद-मंद मुस्काते हुए,
मेरी प्रियसी मेरी ओर चली।

अब बिजली गरज गई,
मेरी प्रियतम लिपट गई।
ऐसा मधुर मिलन हुआ,
पर्वत से सरिता निकल गई।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 12 मई, 2004
            

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