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प्रेम की भाषा (त्रिभंगी छंद) Editior's Choice

अंतः से बोलो, मधु रस घोलो, प्रेम सरल हो,धाम करें।
ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥

परखते हैं खरा, समझो न ज़रा, प्यार तो तनिक, दिखाइए।
यह स्वर्ग है धरा, प्रेम से हरा, हिय तो वैसा, बनाइए॥
है आनंद ईश, रखिए न टीस, प्रेम क्षेम का, जाम करें।
ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥

कर पूर्ण समर्पण, झाँकें दर्पण, ईश्वर झाँकी, भेद खुले।
करे न घालमेल, कर तालमेल, जीवन दर्शन, ख़ूब मिले॥
चल हियगत सुलझें, कहीं न उलझें, सरल व्यक्तित्व, नाम करें।
ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥

हैं वनचर अमोल, बचे भूगोल, मिटाएँ न वन, रोपड़ कर।
न पर्वत ढहाएँ, नदी बचाएँ, योजना बना, ज्ञापन कर॥
पंछियाँ भी बचे, धरा भी जँचे, पुण्य कमाए, राम करें।
ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥


लेखन तिथि : 2 दिसम्बर, 2022
            

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