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प्रकृति का आँचल (कविता) Editior's Choice

चहुँ दिशि किरनें
बिखर गई हैं,
निशाभर सोई लताएँ
उठकर अब निखर गई है।

शबनमी बूँदों ने
निशाभर स्नान कराया,
पवन ने प्रफुल्लित हो
उद्गगार बरसाया।

जागते प्रसून परागों को
सुरभि साथ ले गया,
शीतल मन्द पवन संग
गुल-गुलशन महकाया।

स्वर्णिम रश्मियों ने
सारे जग में प्रकाश बिखेरा,
चाँद सितारे हुये धूमिल
पक्षियों ने राग बरसाया।

मुकुलित पुष्प पात
कुमुदिनी भी खिल उठी,
सर-सरोवर हर्षित हुए
प्रकृति शृंगार सहित सज उठी।

खग-कुल चहकता
पुष्पों का आँचल डोलता,
खेत खलिहान मुस्कुराए
प्रकृति का आँचल हर्षाया।


रचनाकार : कमला वेदी
लेखन तिथि : 12 अगस्त, 2018
            

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