अब ना सखी मोहे फागुन सुहाए,
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये,
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।
अब नहीं करते पिया मीठी बतियाँ,
अब नहीं फागुन गाती हैं सखियाँ।
कोई उमंग सखी मन में ना आए,
अब ना सखी मोरा मन मचलाए।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये,
अब ना सखी मोहे फागुन सुहाए।
बिरहा की अग्नी में हियरा जले है,
कब से ना उनसे नयना मिले हैं।
कब से ना पिया मोहे गरवा लगाए,
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।
अब ना सखी मोहे फागुन सुहाए।
मोरे पिया का ऐसा है मुखड़ा,
धरती पे आया हो चाँद का टुकड़ा।
जैसे अनंगों ने रूप सजाए,
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।
अब ना सखी मोहे फागुन सुहाए,
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।
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