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पत्ते भारी लग रहे (नवगीत)

आड़ा है वक्त
वृक्ष को पत्ते
भारी लग रहे!

पंछी का कलरव
दहशत ने
लील लिया!
ॠतुओं का
चक्र हुआ
प्रदूषण ने कील लिया!

भावनाओं को
चीरने वाली
आरी लग रहे!

खुरपी है,
गैंती है
और कुदाली है!
सन्निपात
होने से
वक्त सवाली है!

उत्सव-उमंग की
एवज में अब
ख़्वारी लग रहे!


लेखन तिथि : 3 अप्रैल, 2019
            

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