पराए दुख दर्द भी
संलग्न हो गए।
कष्टों ने तिनके से
घोंसला बनाया।
पीड़ा का एक शहर,
कोलाहल छाया।।
आदमकद आईने तक
भग्न हो गए।
ऋतुओं का ही
पतझर भी
एक रूप है।
छाया थी जहाँ,
वहाँ कटखनी धूप है।।
मधुऋतु में हैं आम्रकुंज
मग्न हो गए।
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