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पंख को आसमाँ चाहिए (ग़ज़ल)

पंख को आसमाँ चाहिए,
ज़िंदगी को जहाँ चाहिए।

धूप निकली हुई है यहाँ,
औ उसे आस्ताँ चाहिए।

दीप जलने लगे हैं अगर,
पर्व को है अमाँ चाहिए।

आसमाँ छत हुई है जहाँ,
उस बशर को मकाँ चाहिए।

रास्ते में अकेले चले,
और अब कारवाँ चाहिए।


  • विषय :
लेखन तिथि : 2021
            

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