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पाँच अँगुलियाँ (लघुकथा)

कहावत है पाँचो अँगुलियाँ बराबर नहीं होती। इसी बात पर सभी अँगुलियों में विवाद हो गया। हर एक अँगुली अपनी उपयोगिता गिनाने लगी और लम्बाई में सबसे छोटा होने के कारण अँगूठे को अनुपयोगी कहकर उसका मज़ाक बनाने लगीं। सबसे लंबी अँगुली यानि कि माध्यमिका अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने के लिए बोली मैं लम्बाई में सबसे बड़ी हूँ और मैं ही वह हूँ जिसके कारण कहा जाता है कि "जब सीधी अँगुली से घी न निकले तो टेढ़ी करके निकाल लेना चाहिए"।
उसके पास वाली अनामिका ने अपना उपयोग बताते हुए कहा कि मैं तुमसे भले ही छोटी हूँ लेकिन किसी को एक से दो में बदलने के लिए सब मुझी में अँगूठी धारण करते हैं और इस तरह मैं जीवन की दूसरी पारी की शुरुआत करवाती हूँ। यही नहीं अपितु हर शुभ अवसर पर टीका लगते समय मेरा ही उपयोग श्रेयस्कर माना जाता है। यह सुन उससे छोटी तर्जनी कहाँ चुप रहने वाली थी बोली मैं तुम सबमें श्रेष्ठ हूँ क्योंकि अँगुलियों पर नचाने का काम मेरा ही है। मैं किसी को संकेत में काम आती हूँ तो किसी को आदेश देने और देख लेने की धमकी भी मैं ही देती हूँ। चाहे किसी को पास बुलाना हो या वहाँ से निकल जाने की बात कहनी हो तो मेरा एक ही इशारा काफ़ी होता है। बेचारी कनिष्ठा थोड़ी सकुचाई पर अपने आपको संभालते हुए बोली मैं कौनसी कम हूँ। मैं कान की खुजली और आँख व नाक के कचरे को साफ़ करने का कार्य करती हूँ। कमनीय युवतियाँ मेरे ही नाखून को अस्त्र की तरह उपयोग में लाती हैं, उसे सुंदरता के लिए सजाती भी हैं। उनके कोमल चेहरे की खुजली को शांत करने के लिए नाज़ुकता से मेरे वाले नाखून को ही वह कार्य में लेती हैं। अतः "जहाँ काम आवे सुईं, का करे तलवार" को चरितार्थ मैं ही करती हूँ। मेरी बनावट तुम सबसे पतली होने के कारण अधिकांशतः मैं ही उपयोग में आती हूँ। बेचारा बेबस अँगूठा आँखों मे आँसू लाते हुए बोला तुम सब कितनी मतलबी व स्वार्थी हो। तुम सभी यह भूल गई हो कि मैं हर समय तुम्हारे साथ खड़ा रहता हूँ। मेरे साथ मिल कर ही तुम सारे काम कर पाती हो। मैं अकेले ही बहुत कुछ कर सकता हूँ। एक पल में सारी संपत्ति मेरी छाप के द्वारा इधर से उधर हो जाती है। मैं इसी विशेषता के बल पर सभी मनुष्यों को पृथक-पृथक पहचान देता हूँ। मेरा साथ तुम्हारे लिए कितना उपयोगी है यह भी जान लो। माध्यमिका बहन सुनो! मैं तुम सबसे लम्बाई में भले ही छोटा हूँ लेकिन मेरा साथ पाकर ही तुम  किसी को चुटकी बजाकर ध्यान आकर्षित करती हो या फिर धमकी दे पाती हो, यह तुमसे अकेले नहीं हो सकता। अनामिका बहन तुम भी सुनो जब तुम टीका लगाती हो तो उस टीके की सुघड़ता मेरे द्वारा ही संभव है वरना अकेले तो तुम उसको जाने कैसा आकार दे देती। तर्जनी बहन तुम तो पूरी तरह मेरे सहयोग से ही अपने सारे कार्य हल करती हो मेरा साथ होने पर ही तुम कलम पकड़ पाती हो। चित्र बनाने के लिए कूची मेरा साथ पाकर ही चल पाती है। हर काम में मैं तुम्हारे साथ रहता हूँ। कनिष्ठा तुम भी तो मेरे सहयोग से अछूती नहीं हो मेरे साथ से ही तुम ये आँख, नाक, कान का कचरा निकालकर अपनी सफ़ाई मेरे से ही करवाती हो। इतना ही नहीं तुम सब को इकठ्ठा कर एक परिवार के रूप में जब मुठ्ठी बंद करती हो तो मैं ही तुम्हारा संरक्षक बनकर तुम्हारे ऊपर आकर परिवार के मुखिया की भूमिका निभाता हूँ। खुली मुठ्ठी खाक की और बंद मुठ्ठी लाख की मेरी वजह से ही संभव है। मेरा साथ पाकर ही एक और एक दो से एक और एक ग्यारह हो पाती हो। अब आप सभी आत्मावलोकन करें तो तुम्हे मेरी उपयोगिता का अहसास होगा। यही नहीं अपितु किसी को अच्छे भाग्य एवं कर्म के लिए तुम्हे अपने साथ लेकर उसे बेस्ट ऑफ लक बोलने एवं प्रोत्साहित करने का कार्य मैं ही करता हूँ। किसी का कार्य पसंद न आने पर उसका अहसास भी मैं तुम्हे अपने ऊपर रखकर और स्वयं को नीचे रखकर करवाता रहा हूँ। उम्मीद है अब कभी मेरी लघुता का उपहास नहीं बनाओगी। यह सुनकर सभी अँगुलियाँ शर्मिंदगी से अपनी नज़रें झुका लेती हैं। अँगूठा माहौल की तपन को परिहास में बदलते हुए बोलता है कि तुम सब जो कुछ भी अपने बारे में कह रही हो यह भी मेरे द्वारा ही संभव है अगर मोबाइल पर टाइप करते समय मैंने मेहनत नहीं कि होती तो तुम यह सब कुछ भी नहीं बता पाती। अँगुलियाँ अपने शब्दों पर लज्जित होते हुए एक स्वर में अँगूठे की उपयोगिता स्वीकारते हुए कहती हैं सही कहा आपने अँगूठा भाई हमें किसी को कमतर नहीं आँकना चाहिए। दुनिया में हर एक वस्तु का अपना महत्व है। यह छोटे-बड़े का भेद हमारे अंदर नहीं होना चाहिए लेकिन क्या करें शायद यह सब कुछ मानव संगत का असर है जो हम अभिमान में आकर यह सब कह बैठी। हम सब का अस्तित्व एक दूसरे के साथ से ही है यह बात अब हमें समझ आ चुकी है। "थोथा चना बाजे घना" वाली कहावत हमारे लिए ही है शायद लेकिन अब बंद मुठ्ठी की ताक़त का अहसास हमें हो गया है। अब हम हमेशा एकता के बंधन में ही बंधे रहकर चुटकियों में सारी समस्याओं का हल कर दिया करेंगे। यह कह कर सबने साथ मिलकर मुठ्ठी बाँधी और उसको ताक़त से हवा में उछालते हुए बोले- हुर्रे।


लेखन तिथि : मार्च, 2021
स्रोत :

पुस्तक : कालिका दर्शन पत्रिका
प्रकाशक : बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी, आगरा
पृष्ठ संख्या : 25 से 28
            

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