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निशा चुभाती ख़ंजर (कविता)

प्रेम रस में तेरे,
भीगा मेरा मन।
तुम हो प्रिये,
साहित्य की रतन।।

शब्दों की तुम,
पिरोई हो माला हो।
साहित्य की तुमने
सजोई वर्ण माला हो।।

तेरे लिखे काव्य में,
ढूँढता मैं ख़ुद को।
काश! लिखा मिल जाए,
चाहती तुम भी मुझको।।

चाहता बन के रहना,
तेरे क़लम की स्याही।
हर पल प्रिय तुम,
बनी रहो मेरी हमराही।।

जैसे बिन खेती के
भूू बनती है बंजर।
वैसे बिन तुम मुझे
निशा चुभाती ख़ंजर।।


रचनाकार : अंकुर सिंह
लेखन तिथि : 14 जुलाई, 2021
            

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