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नील कण्ठ सुनते सबकी पुकार (कविता)

भोले बाबा के दरबार दर्शन को आतें अनेंक नर नार,
जटा से बहे गंगा की धार महिमा आपकी अपरंपार।
नीलकण्ठ सुनते सबकी पुकार दूर करतें है अँधकार,
खाली नहीं जाता कोई वार आपकी माया है अपा‌र।।

डमरु-धारी और जटा-धारी अद्भुत है त्रिशूल तुम्हारी,
ब्रह्माण्ड रटता त्रिपुरारी नन्दी की करतें आप सवारी।
तीनों लोकों के आप स्वामी शंकर भोले है अंतर्यामी,
आप त्रिनेत्र ललाट धारी और आप ही भोले भंडारी।।

आपके गले साँपों की माला नटवर आप हो निराला,
बसें पर्वत पहाड़ हिमाला डेरा ऐसी जगह पर डाला।
हम भक्तों का आप सहारा दर्शन दो अरमान हमारा,
दुःख सबका हरने वाला आक भाँग धतूरा पी डाला।।

आपके नाम है अनेंक पुत्र कार्तिकेय एवं यह गणेश,
सब मिलकर बम बम बोलें भक्ति करें ध्यान लगावे।
भूत प्रेत ये भाग जावे ताण्डव करें धरती हिल जावे
गौरा भाँग घोट कर लावे शिव को पूजे और मनावे।।

शंकर भाँग धतूरा विश‌ पीते त्रिलोक भी चर्चा करतें,
महाशिवरात्रि हर साल आती दुनिया उत्सव मनाती।
इसदिन प्रकट हुए पहली बार जिनका वार सोमवार,
फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर्व मनाती।।


रचनाकार : गणपत लाल उदय
लेखन तिथि : 1 मार्च, 2022
            

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