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नई शताब्दी (कविता)

नई शताब्दी का हुआ आगमन,
खिल उठा मानव का जीवन।
नया उल्लास है, नूतन वर्ष,
सारे जग में फैला है हर्ष।

प्रवेश हुआ विज्ञान युग में,
जीवन के संग्राम युद्ध में।
शशि वही है, रवि प्रकाशित,
पर मानव विज्ञान पर आश्रित।

प्रकृति का हो रहा सर्वनाश,
परिणाम इसका होगा विनाश।
कहीं बाढ़ है, कहीं आकाल,
मानव का क्या होगा हाल।

क्या सोचा कभी, हैं हम कहाँ,
उसी जगह हम थे जहाँ।
पाया कुछ, है खोया काफ़ी,
किसका कौन यहाँ है साथी।

पर कौन त्याग करेगा ख़ुशियाँ,
कौन बनेगा पिंजरे का पंछी।
नाश करो तुम मनाओ आनंद,
नई शताब्दी का हुआ आगमन।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 1 जनवरी, 2000
            

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