साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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बेगूसराय, बिहार | 1983
उठ रहा धुँआ जल रहा परिवार, लेकिन मौन बैठकर देख रहा संसार। क्यों जानकर हम बन जाते अनजान, गुटका, खैनी, मदिरा का करते हैं पान। भटके को राह दिखाना है मृत्यु से लड़ जाना है, ज़रूरत है प्यार की, आस की, प्रकाश की, एक नये मार्ग की, थोड़े से प्रयास की।
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