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मुझे पुकार लो (गीत) Editior's Choice

इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!

1.
ज़मीन है न बोलती
न आसमान बोलता, 
जहान देखकर मुझे 
नहीं ज़बान खोलता, 

नहीं जगह कहीं जहाँ
न अजनबी गिना गया, 

कहाँ-कहाँ न फिर चुका 
दिमाग़-दिल टटोलता, 

कहाँ मनुष्य है कि जो 
उमीद छोड़कर जिया, 
इसीलिए अड़ा रहा 
कि तुम मुझे पुकार लो!

इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!

2.
तिमिर-समुद्र कर सकी 
न पार नेत्र की तरी, 
विनष्ट स्वप्न से लदी, 
विषाद याद से भरी, 

न कूल भूमि का मिला, 
न कोर भोर की मिली, 

न कट सकी, न घट सकी
विरह-घिरी विभावरी, 

कहाँ मनुष्य है जिसे 
कमी ख़ली न प्यार की, 
इसीलिए खड़ा रहा 
कि तुम मुझे दुलार लो!

इसीलिए खड़ा रहा 
कि तुम मुझे पुकार लो!

3.
उजाड़ से लगा चुका 
उमीद मैं बहार की, 
निदाघ से उमीद की, 
बसंत के बयार की, 

मरुस्थली मरीचिका 
सुधामयी मुझे लगी, 

अंगार से लगा चुका
उमीद मैं तुषार की, 

कहाँ मनुष्य है जिसे 
न भूल शूल-सी गड़ी, 
इसीलिए खड़ा रहा
कि भूल तुम सुधार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!


            

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