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मेहंदी सात वचनों की (कविता)

लाल-लाल मेहंदी से रच गई प्रियतमा की हथेलियाँ,
लगाई जब पिया के नाम की मेहंदी, क़िस्मत ने ली अठखेलियाँ,
रंग गयी पिया के प्यार में, प्रियतमा की दोनों हथेलियाँ ।
मन ही मन में ले रही थी, प्रियतम की गलबहियाँ।

अद्भुत शमा था वह प्यार का, हो रहे थे एक दूजे में मगन,
चढ़ रही थी प्यार की ख़ुमारियाँ, पिया का प्रियतमा से हो रहा था लगन।
एक दूसरे के थामकर हाथ, ले रहे दोनों अग्नि के फेरे,
किया सदा स्नेह विश्वास का वादा, और लिए वचन बहुतेरे।

सात वचनों पर टिका है, पति-पत्नी का जन्म जन्मांतर का प्यार,
इन्ही सात वचनों में बंधा, इनके सपनों का संसार।
पहला वचन धर्म कार्य का, पति दे पत्नी को सम्मानित स्थान,
दूसरा वचन पति दे पत्नी के माता-पिता को पूरा सम्मान।

तीसरे वचन में पत्नी चाहे, उम्र के हर पड़ाव में पति का साथ,
चौथे वचन में पति करे, परिवार का निर्वहन, थामकर पत्नी का हाथ।
पाँचवे वचन में पति ले, गृह के मामलों में पत्नी की सलाह,
छठे वचन में पत्नी माँगे, पति न करें कोई अपमान, और न ही कोई कलह।

सातवें वचन में पत्नी चाहे, अपने पद का एकाधिकार,
न दें जीवन में पति, किसी और को पत्नी का प्यार।
इन्ही सात वचनों में बंधा, पति-पत्नी का जन्मों-जन्मों का प्यार,
इन्ही सात वचनों में समाहित, समानता का अद्भुत आधार।

रचती जब हाथों में दुल्हन की, इन सात वचनों की मेहंदी,
लगती तब दोनों के दिलपर, स्नेह और विश्वास की हल्दी।
यह विश्वास का भाव ही देता, आपसी प्यार को मज़बूत आधार,
इन्ही वचनों में समाहित, पति-पत्नी का प्यारा संसार।

न तोड़ना कभी इन वचनों का बंधन, तभी टिकेगा पवित्र यह रिश्ता,
अगर हो दिल में विश्वास, प्यार हो ही जाता आहिस्ता-आहिस्ता।
रिश्ता तो होता दो परिवारों में, प्यार की धारा इसे सिंचती,
दो नाम मिलकर हो जाते एक, प्यार की मेहंदी जब हाथों में रचती।


लेखन तिथि : 21 नवम्बर, 2021
            

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