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महँगाई (कविता)

गैस सिलेंडर महँगा क्या हुआ,
बस्ती का हर चूल्हा अब सुर्ख़-ओ-राख़ हुआ।
माँओं ने बड़ी कुशलता से सीख लिया था गैस चूल्हा चलाना,
गैस सिलेंडर की गैस इतनी सड़ी कि सम्भव नहीं उसके पास माँओं का हँसते-बतियाते रोटी बनाना,
बस्ती की महिला शक्ति ने धुएँ से फूटती आँखों से जब पीड़ा सुनाई,
भारी भरकम आवाज़ में बोले राह-नुमा,
पहले भी बनाती थी महिलाएँ चूल्हें से रोटी,
थोड़ी सी मँहगाई क्या बढ़ी,
हमारी सरकार को सुनाने लगे खरी खोटी।

बस्ती ने देश में बहुतेरे पी. एम. देखें,
कुछ अच्छे तो कुछ निय्यत के काले देखें,
बदलें नेता-मंत्री, बदली सरकारें,
पर भाषणों में ही रह गए विकास के वादें,
जो जीतकर चला गया ऐवान,
वो हो गया बलवान, भूल गया भगवान,
उसे कोई परवाह नहीं अगरचे रोए घर-घर में भागवान।
चूल्हें में फूँक मारती, आँखें मसलती माँएँ सुनाती दुत्कारें,
पर नेता मक्कारचंद देशभर में अख़बार के पहले पन्ने पर मुस्करातें,
महँगाई हमारे नियंत्रण में हैं, विपक्ष का काम हैं बरग़लाना,
मेरी माताओं और बहनों, तुम सीख लो चूल्हा जलाना।
नेता दौलतचंद ने कहा,
अब हमारी पार्टी नाम दुनियाभर में ख़ास हो गया,
काले धन का रास्ता साफ़ हो गया,
सात पुश्तों का मुनाफ़ा हमारे हाथ में आ गया।
नेताओं की सफेदपोश मक्कारी से अब आम आदमी का विवेक आज़ाद हो गया,
सब थे झूठे वादे, किये थे चुनावी जुमलें, उसे ये अब अहसास हो गया।
महँगाई ने जब-जब याद किया,
इस पर बोले प्रतिपक्ष के नेता,
तुमने हमें वोट नहीं दिया, अब भुगतो,
तुम जैसों से देश का बेड़ा ग़र्क़ हो गया,
आम आदमी के लिए जब से राशन तेज़ हो गया,
विपक्ष के लिए भाषण देना तब से और विशेष हो गया,
सत्तारूढ़ पार्टी के नेता ख़ूब भोग विलासी थे,
वे भी महँगाई के विषय में बराबर दोषी थे,
आम आदमी मारे बोझ के झाम हो गया,
इस पर बोली सरकार,
हमारी सरकार ने कुछ नहीं किया,
फिर भी हमारा सुर्ख़ियों में नाम हो गया।
मुफ़्लिस की रोटी जब से भारी हो गई,
तब से रसोई में गैस सिलेंडर चोरी हो गई,
इस चोरी की प्रत्यक्षदर्शी महँगाई अब रुदाली हो गई,
इतना ज़ोर से चीखी कि देशभर में उसकी वाह वाही हो गई।
अब बस्ती के हर फ़टे होंठ पर एक ही दर्द का ज्वार उठता हैं,

मँहगाई तू क्यूँ तेज़ हो गई,
क्यूँ तू मेरे जीवन पर विपत्ति का पहाड़ हो गई,
इस पर बरस पड़ी महँगाई,
और जीवन बुझाते हुए बोली,
हाँ, अब मैं बेरहम हो गई।


लेखन तिथि : 2021
            

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