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मौत (कविता)

मौत तेरे
कई बहाने,
न जाने
किस बहाने
अपने पास बुलाए।
न उम्र का बंधन,
बाल हो या हो प्रोढ,
जिसे तू
न सुलाए।
राजा हो
या होवे रंक,
पुरुष हो
या होवे नारी,
सबको अपनी
आग़ोश में अपनाए।
चक्रवर्ती रावण
जिसने काल
को अपनी पाटी से बाँधा।
सौ-सौ रण बांकुरे हुए,
पर एक न बचा
किसी ने रावण
को न दिया काँधा।
कभी किसी
दुर्घटना में,
कभी किसी को
पानी में डुबोया।
कभी किसी को
बीमारी से,
तो कभी किसी को
हार्ट अटैक आया।
कभी किसी को
कुत्ता की मौत,
तो कभी कोई
देश की
ख़ातिर शहीद होत।
अल्प आयु में
सुत को जाते देख,
माता दहाड़-दहाड़ कर रोवे।
कोई-कोई
ख़ुशी-ख़ुशी में,
पूरी उम्र सौ के
पार होवे।
मौत तू
बड़ी बेदर्दी
कोरोना काल में
होरा से बिनवाए।
न जात देखी,
न उम्र देखी,
सुहागन का सुहाग छीना
पिता की लाठी छिनवाए।
मौत तेरे
कई बहाने
न जाने,
किस-किस बहाने से
अपने पास बुलाए।


            

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