पूष को
सूर्य किरण
रही है
बुहार!
जाड़े में
हैं जम गईं
रातें!
कंबल ऊनी
शाल के
नाते!
बाग़ में
मँडराते
अलि की
गुहार!
है पहाड़ों
पर कोहरा
घना!
पारा लुड़का
मौसम
अनमना!
खिल रहे
फूलों की
सूर्य को
जुहार!
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