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मासूमों की मुस्कान (कविता)

कितनी निर्मल कितनी मोहक,
है इन मासूमों की मुस्कान।

गंगा की निर्मल धारा सी,
है इन नादानों की पहचान।

इनके बीच पहुँचकर लगता,
भूल गई सब ग़म अपने।

उन मासूम सवालों में घिर,
समझाती उत्तर कितने।

नन्हे- मुन्ने भोले-भाले,
इतना प्यार मुझे क्यूँ करते।

डाँट-पीट भी भूल-भाल कर,
मेरे चरणों पर सिर रखते।

लाख मना करने पर भी,
इमली गन्ना नींबू लाते।

मेरी प्यारी मैम आ गईं,
रस्ते में मिल शोर मचाते।

बहुत ग़रीबी बहुत अभावों में,
घिरा हुआ इनका बचपन।

फिर भी कितना ग़ज़ब जोश है,
पढ़ने को आतुर उर मन।

माँ जैसी बनना पड़ता है,
कभी सख़्त टीचर जैसी।

इनमें शिक्षा दीक्षा भर दूँ,
सदा भावना है ऐसी।

इनके नन्हे-नन्हे सपने,
हे! प्रभु तुम पूरे कर दो।

पढ़ लिख कर सब योग्य बने,
इनको ऐसा ही वर दो।


लेखन तिथि : 2 जनवरी, 2019
            

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