देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

मनोहर पहाड़ (कविता) Editior's Choice

हरियाली के आँचल में
बसती चलती साँसें मेरी,
सुखद, शीतल समीर में
उड़ती जाती आशाएँ मेरी।

मनोहर पर्वत पहाड़ों में
बसता है मन प्राण मेरा,
बादलों के घने घेरों में
उड़ता पावन आँचल मेरा।

ना शहर की त्राहि-त्राहि
ना शहर का बेगाना-पन,
यहाँ हर कोई अपना है
मिलता हर-दम अपना-पन।

पहाड़ियों के बीच जब
दिनकर उदित होता है,
सुखद शीतल समीर बहती
मन मलयानिल होता है।

ठंडी-ठंडी धाराएँ बहती
सरोवर लबा-लब भर जाते हैं,
वन उपवन खिल खिल जाते
पक्षी स्वछंद विहार करते हैं।


रचनाकार : कमला वेदी
लेखन तिथि : 5 मार्च, 2021
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें