मैं कौन हूँ?
एक अनुत्तरित
प्रश्न सदा से,
क्या मैं हूँ...
चर्म आवरित
एक अस्तित्व मात्र,
या हूँ मैं...
प्रभुता अस्मिता का
अविच्छिन्न स्रोत
आत्म मंथन करता
सतत यह मन,
निरुद्देश्य
भ्रमणावलासत
प्रतीत पशु सम जीवन,
दिव्यता का अभाव,
प्रज्ञा चक्षु विहीन
सांकर्य स्वभाव,
गंतव्य से अंजान,
सम्मोहित प्राण,
पकड़े संबंधों की डोर
बाँधे हैं छोर,
नौ द्वारे के पिंजर में
व्याकुल अंतरात्मा
अजब-सी छटपटाहट
आत्मालोचन
अति मुश्किल
प्रश्न व्यूह में उलझे
निष्कर्षतः
मैं हूँ कौन?
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