मैं एक पत्रकार हूँ,
मैं एक पत्रकार हूँ।
समाज का हूँ आईना,
अवाम का ग़ुबार हूँ।
कहाँ पे क्या सही हुआ,
कहाँ पे क्या ग़लत हुआ।
कहाँ पे क्या सृजित हुआ ,
कहाँ पे क्या घटित हुआ।
समाज के वजूद का,
मैं ही तो चित्रकार हूँ।
मैं एक पत्रकार हूँ,
मैं एक पत्रकार हूँ।
समाज का हूँ आईना,
अवाम का ग़ुबार हूँ।
कर्मपथ पे मौत हो,
मैं मगर डरूँ नहीं।
अमीर क्या ग़रीब क्या,
भेद मैं करूँ नहीं।
ख़ुशी की बात हो या ग़म,
अवाम की पुकार हूँ।
मैं एक पत्रकार हूँ,
मैं एक पत्रकार हूँ।
समाज का हूँ आईना,
अवाम का गुबार हूँ।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें