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मछली बोली जल ही जीवन (नवगीत)

मछली बोली जल ही जीवन
समझें औ समझाएँ।

हो रहा जल का दुरुपयोग
था अकूत भंडार।
सपने सेना उज्जवल
भविष्य के है बेकार।।

भरे तरावट तन-मन में जो
ऐसा कुछ हम खाएँ।

लटक रहे हैं आम्रकुंज में
आम के टिकोरे।
प्यास के लिए पंछी की
छत पर रखे सकोरे।।

बाग-बगीचे, पर्वत-पर्वत
टेसू ठाठ जमाएँ।

तपने लगी धूप वह जैसे
जाड़ा भूल गई।
फुनगी ज्यों कि हरियाली का
पहाड़ा भूल गई।।

एसी, कूलर, पंखे- गर्मी
देख-देख इतराएँ।


लेखन तिथि : मार्च, 2022
            

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