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माँ तुम कभी थकती नहीं हो (कविता)

माँ तुम कभी थकती नहीं हो।
सुबह से लेकर शाम तक,
घर हो या दफ़्तर, सबके आराम तक,
बैठती नहीं हो,
माँ तुम कभी थकती नहीं हो।

अपने बच्चों को तुमने ज़िम्मेदार बनाया,
समाज में नाम और प्रतिष्ठा दिलवाया,
अपनी ज़िम्मेदारियों से मुख कभी मोड़ती नहीं हो,
माँ तुम कभी थकती नहीं हो।

हर क़दम पे पापा का साथ निभाया,
हम बच्चों को हौसलें का पाठ पढ़ाया,
घर और दफ़्तर के बीच भागती रही,
ज़िम्मेदारियों का सेतू बाँधती रही,
जीवन की कठिनाइयों से,
डरती नहीं हो,
माँ तुम कभी थकती नहीं हो।

हमारे खिलौने के लिए अपनी चाहतों को दबाए रखा,
हर सूरत में अपनी गृहस्थी को बचाए रखा,
हर वक़्त हमपर ममता लुटाती रही,
पीड़ाओं को सहकर सदा मुस्कुराती रही,
अपनी पीड़ा के राज़ तुम कभी खोलती नहीं हो,
माँ तुम कभी थकती नहीं हो।

जिस पर खड़ा है हमारा परिवार,
तुम वो मज़बूत आधार हो,
थकान भी थक कर हार जाएँ,
तुम हौसलें की वो चट्टान हो,
तुम ममता की कलकल बहती नदी,
कभी रुकती नहीं हो,
माँ तुम कभी थकती नहीं हो।


रचनाकार : विजय कृष्ण
लेखन तिथि : फ़रवरी, 2018
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