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लॉकडाउन और मधुशाला (कविता)

नगर गाँव महानगर बंद,
लटका जग भर में ताला।
छाती पर मूँग को दलने,
खुली फिर से मधुशाला।।

लॉकडाउन की ऐसी तैसी,
सोशल डिस्टेंसिंग धो डाला।
ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने,
खुली फिर से मधुशाला।।

मंदिर मस्जिद सब बंद हुए,
हे प्रभु! क्या है होने बाला।
कोरोना से अठखेली करने,
खुली फिर से मधुशाला।।

दो जून रोटी छिनी, पेट भूखा,
तर कंठ करे साक़ी प्याला।
सत्ता जुगत ख़ज़ाना भरने,
खुली फिर से मधुशाला।।

लम्बी तंग जुटी कतारों में,
फैलाए महामारी हाला।
घर-घर की ख़ुशियाँ डसने,
खुली फिर से मधुशाला।।


लेखन तिथि : 7 मई, 2020
            

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