मुश्किलों से जो कभी मन
हार थककर बैठ जाए,
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी?
हाँ मुझे स्वीकार निर्मल, नेह का बंधन तुम्हारा,
और तुम पर है समर्पण, प्रेयसी जीवन हमारा।
किन्तु क्या तुम भी हमारे, प्रश्न का उत्तर बनोगी,
ज़िंदगी में साथ मिलकर, आप सुख दुख को सहोगी?
जब हमारी ज़िंदगी की
हर घड़ी प्रतिकूल होगी,
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी?
सत्यपथ पर यदि कभी भी, पैर मेरे डगमगाएँ,
और मेरी हार पर जब, लोग खुलकर मुस्कराएँ।
जब हृदय आशा हमारी टूटकर के हो बिखरती,
और आँखों से हमारी, अश्रुधारा हो छलकती।
घोर पीड़ा में कभी जो
एक बन जाऊँ वियोगी,
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी?
जब हमारा भाग्य भी, दुर्भाग्य बनकर फूट जाए,
साथ अपनो से हमेशा, के लिए जब छूट जाए।
जब हमारी मंज़िलों पर, मुश्किलें पहरा लगाएँ,
और यादें जब किसी की, रात भर हमको रुलाएँ।
जब मधुर मनुहार में
पड़कर बने हम प्रेम रोगी,
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी?
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