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क्या कभी ऐसा होगा? (कविता)

क्या कभी ऐसा होगा?
मैं तुम्हें सोचू और तुम आ जाओ!

क्या कभी ऐसा होगा?
मैं तुम्हें सोचू और तुम्हें ख़बर हो जाएँ।

क्या कभी ऐसा होगा?
तुम्हारा शहर हो, हम हाथ में हाथ लिए घूमे।

क्या कभी ऐसा होगा?
शाम हो, तुम हो और मेरा सिर तुम्हारे काँधे पे हो।

क्या कभी ऐसा होगा?
ख़्वाब में नहीं, मैं खुली आँखो से तुम्हें देखु।

क्या कभी ऐसा होगा?
तुम्हारा दिल जिसके लिए धड़के वो मैं हो जाऊँ!

क्या कभी ऐसा होगा?
हमारी ऐसी मुलाक़ात हो, जो कभी ख़त्म ना हो।

क्या कभी ऐसा होगा?
तुम मेरा इंतज़ार करो, मुझे मेरी तरह प्यार करो।

क्या कभी ऐसा होगा?
मेरी ज़िंदगी के हक़दार तुम
और तुम्हारी जिंदगी की हक़दार मैं हो जाऊँ।

क्या कभी ऐसा होगा?
मैं तुम्हें एक ख़्वाब समझकर भूल जाऊँ।

और कभी ऐसा ना हुआ तो क्या होगा!

सच तो ये है ऐसा कभी नहीं होगा,
ना तुम मिलोगे, ना हम तुम्हें भूलेगें।

"क्या कभी ऐसा होगा?"
मैं रोज़ सोचती हूँ
रेत पर ख़्वाबों का महल बनाती हूँ।


लेखन तिथि : 23 जनवरी, 2020
            

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