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कृष्ण मुरारी (चौपाई छंद)

वसुदेव सुत देवकी लाला।
सिर पर झाँपी उसमें डाला॥

चले देवकी से वह कहकर।
पहुँचे गोकुल नगरी चलकर॥

गोकुल नगरी में गोपाला।
नंद यशोदा ने है पाला॥

सबकी आँखों का वो तारा।
मेरा मोहन जग में न्यारा॥

मोर मुकुट है सिर पर साजे।
बंसी बंशीधर की बाजे॥

गोकुल महके जैसे चंदन।
ऐसे मेरे है यदुनंदन॥

मिश्री से है मीठी बोली।
जोगनियाँ मैं तेरी होली॥

बना हुआ है गोकुल कासी।
कृष्ण हुए हैं जब से वासी॥

तेरे पीछे सब साँवलिया।
तू जग का है कैसा छलिया॥

हाथ जोड़ सब करते वंदन।
मेरे गिरिधर केशव कुंदन॥

देखो नटखट है बनवारी।
आदिदेव है कृष्ण मुरारी॥

नृत्य करे वह देखो फनपर।
ऐसे मेरे है मुरलीधर॥

हर दिन जब लगते हैं मेले।
संग सखी के कान्हा खेले॥

छेड़े नटखट चूड़ी कंगन।
ऐसे गिरिधर केशव नन्दन॥

राधा थोड़ी है चंचल सी।
मीरा थोड़ी है पागल सी॥

रूप तुम्हारा सबको भाए।
सुध-बुध गोपी सब खो जाए॥

उद्धव गोपी को समझाए।
प्रेमजाल में कृष्ण फँसाए॥

फिरत चराए गिरधर गइया।
नटखट मोहन है कन्हैया॥

कृष्ण संग वह झूला झूली।
कृष्ण मोह में सब कुछ भूली॥

प्रेम प्रीत में ऐसी खोई।
जग में जैसे और न कोई॥

सबका है वो राखनवारा।
सबका है वो पालनहारा॥

कृष्ण मुरारी है ऋतधामा।
हाथ सभी का उसने थामा॥

पहले पूतना को है मारा।
कंस उसी ने है संहारा॥

तृणावर्त का वध कर आया।
शकटासुर को मार गिराया॥

जब कान्हा के दर पर आए।
देख सुदामा नीर बहाए॥

न्याय करे वह देख सही है।
ऊँच नीच का भेद नहीं है॥

सामने भाई और खड़ा सुत।
धर्मयुद्ध था कैसा अद्भुत॥

भीष्म पितामह सामने आए।
अर्जुन कैसे बाण चलाए॥

सारथी बनकर केशव आए।
अर्जुन को उपदेश सुनाए॥

धर्मयुद्ध का पाठ पढ़ाया।
अर्जुन ने फिर धनुष उठाया॥

कृष्ण मुरारी ने समझाया।
अद्भुत गीता ज्ञान बहाया॥

पथप्रदर्शक बनकर आए।
सौ के आगे पाँच जिताए॥

द्वापर युग में है गिरधारी।
विष्णु रूप का है अवतारी॥

कलयुग में जब पाप बढ़ेंगे।
कल्कि रूप में फिर आएँगे॥


लेखन तिथि : 23 अगस्त, 2022
            

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