सीतामढ़ी, बिहार | 1996
कू-ए-बुताँ तक फिरूँ आराम-ए-जाँ की ख़्वाहिश लिए, वर्ना मैं निकलूँ भी तो घर से कहाँ की ख़्वाहिश लिए।
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