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कोकिला (कविता)

बदली-बदली सी है आज,
जाने क्यूँ कोकिला की आवाज़?
प्रकृति की जर्जर होती हालत,
ख़त्म हो रही हरी भरी वादियाँ,
नदियों का दूषित होता जल,
रुला रहे सब कोकिला को आज ।

बुझी बुझी सी है आज,
जाने क्यूँ कोकिला की तान?
मानव का अवनत होता मन,
एक दूसरे से हो रहा वैमनस्य,
शक्ति के लिए हो रहा उन्माद,
करा रहे कोकिला के दर्द का भान।

रुँधा-रुँधा सा है आज,
जाने क्यों कोकिला का स्वर?
भावनाओं में फैला कसैलापन,
धर्म के नाम पर फैलता ज़हर,
राजनीति के नाम हो रहे खेल,
जता रहे कोकिला के मन का डर।

क्रोधित सी लग रही है आज,
जाने क्यूँ कोकिला की मात?
देश के अंदर पनप रहे ग़द्दार,
बिखर रहे सब संयुक्त परिवार,
भाई का भाई से मिटता प्यार,
दे रहे सब कोकिला को आघात।

क्रुंदन कर रहा है आज,
जाने क्यूँ कोकिला का मन?
नारी पर हो रहा निर्यातन,
ग़रीबों का हो रहा दमन,
पैसों का बढ़ता प्रलोभन,
कर रहे कोकिला के मन में कम्पन।

क़ैदखाने सा लग रहा है आज,
जाने क्यूँ कोकिला का मन आँगन?
कोरोना का बढ़ता प्रकोप,
घरों में बंद बेबस से सब लोग,
भूख से बेहाल बिलखते बच्चे,
उजाड़ रहे सब कोकिला का चमन।

बेरंग सी हो रही है आज,
जाने क्यूँ कोकिला की स्वर तरंग?
शासन के विरुद्ध होते षडयंत्र,
किसानों के हो रहे आंदोलन,
मीडिया में हो रहे झूठे प्रसारण,
कर रहे कोकिला का मोह भंग।

अशांत सा हो रहा है आज,
जाने क्यूँ कोकिला का चित्त?
मध्यमवर्ग की टूटती हालत,
आर्थिक प्रगति की गिरती दर,
सीमाओं पर होते अतिक्रमण,
करते कोकिला का मन विचलित।

क्रुद्ध सा हो रहा है आज,
जाने क्यूँ कोकिला का अंतर्मन?
जजों की हो रही ख़रीद फ़रोख़्त,
अदालतों में रुके हुए फैसले,
गवाहों के रोज़ बदलते बयान,
अवरुद्ध करते कोकिला का मन।

क्षुब्ध सा हो रहा है आज,
जाने क्यूँ कोकिला का आचरण?
हर ओर फैला हुआ भ्रष्टाचार,
लड़कियों पर बढ़ते बलात्कार,
युवापीढ़ी में फैलता कदाचार,
कर रहे कोकिला को अशांत मन।

विमुग्ध सा हो रहा है आज,
जाने क्यूँ कोकिला का ध्यान?
छोटी-छोटी बातों पर हो रहे तलाक़,
समाज में बढ़ती हुई विसंगतियाँ,
पनप रही धार्मिक कुरीतियाँ,
कर रहे कोकिला का दुख बयान।

कहती कोकिला आज जग से,
लौटा दो ख़ुशियों का विहान।
मिटा दो मन से सारे वैमनश्य,
लौटा दो फिर हरी भरी वसुंधरा,
छुड़ा दो क़ैद से मेरा मन चमन,
गूँजेगी तभी धुन, बजेंगे सरगम।


लेखन तिथि : 17 अगस्त, 2021
विश्व में बढ़ती विषमता पर कवि रूपी कोकिला की मनोदशा को चित्रित करती प्रस्तुति।
            

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