कोई सागर नहीं है अकेलापन
न वन है
एक मन है अकेलापन
जिसे समझा जा सकता है
आर-पार जाया जा सकता है जिसके
दिन में सौ बार
कोई सागर नहीं है
न वन है
बल्कि एक मन है
हमारा तुम्हारा सबका अकेलापन!
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