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किताब की चाहत (कविता)

एक चिड़िया सी चहकती है,
मन के कोने-कोने को भाती है,
किताबें हैं यह जो हर पल गुनगुनाती है।
हर किसी को आती नहीं बातें रास-रसिली,
परियों के क़िस्से यही सुनाती है,
ज्ञान सागर से भरपूर,
कला विज्ञान व रेखांकन यही सिखाती है।
कोई हँसे तो हँसे यह, रोए तो ख़ूब रुलाती है,
वाणी मधुर सातवीं संगम
शब्दों की जोड़ कतरन-कतरन
एक दोस्ती निभाती है।
एक जिज्ञासु मन में जगा कर जोत अलख,
सागर सा भरा ज्ञान आब दे जाती है।
मेटे से ना मिटते मन के मेल,
एकाग्र चित्त होकर जुड़े इनसे,
तो निरंतर ध्यान लगवाती है।
होती नहीं अमीर-ग़रीब के भेद सी,
जीवन के समस्त रहस्य बतलाती है।
कभी नाप तौल अंबर से ऊँचाई की,
कभी ख़्वाबों का आसमान दिखाती है,
चंद पन्नों में समेटकर इतिहास
कल-आज-कल का आईना दिखाती है।
घोर संकट जीवन का तो समाधान बताती है
हो पत्थर दिल अपराध का,
प्यार प्रेम एकता की ललक जगाती है।
होता नहीं हर किसी का भ्रमण पर हो आना,
दिल लग जाए तो
दुनिया भर की सैर करवाती है।
महिमा बड़ी निराली हैं इनकी,
चाहे पाँव में भी रख चलो इनको,
जुड़ गए इनसे तो
यह उच्च आदर सत्कार दिलवाती है।
ना यह, ना वह, ना मैं, ना तुम, ना कोई सौग़ात जगाती है,
यह शहंशाह है वह जो अपने आप से मुलाक़ात करवाती है।
बहुत कुछ कहना चाहती हैं,
तुम्हारे अक्ष में रहना चाहती है,
हर एक में बसा संसार चाहती है,
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ चाहती है,
किताबें हैं यह मानवता का विकास चाहती है।।


लेखन तिथि : 10 मार्च, 2022
            

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