ख़्वाहिश का उठे जनाज़ा है,
ख़बर अख़बार की ताज़ा है।
मूल सूद चुकता है फिर भी,
बेजा है चूँकि तक़ाज़ा है।
हम समझे उन्हे बे-अदब थे,
नेमत ने जिन्हें नवाज़ा है।
एक कफ़न भी जुटा न पाया,
दुनिया में ख़ूब अवाजा है।
लुप्त बन्धु-बांधव औ रिश्ते,
लोगों से दूर तवाजा है।
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