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कविता (कविता)

बहुत बड़ा शहर
बहुत बड़ा अँधेरा
छोटा बच्चा खोया हुआ बड़ी अँधेरी भीड़ में
मुझे यह सपना बार बार आता है

अँधरे से एक पतले धागे से जुड़े होने का एहसास कई बार होता है
कभी अँधेरे तक पहुँचने की कोशिश भी की है
महज़ संयोग है कि अभी तक किसी गड्ढे में गिरा नहीं

किसने दरख़्तों के ख़ून से काग़ज़ के पहाड़ बनाए
जिनमें मुझे अँधेरे में वापस लौटाने के समीकरण लिखे हैं
मैं बार-बार वह सपना देखता हूँ
कविताएँ लिखता हूँ
मेरा सपना शब्दों में उतरकर अक्षरों में
हर अक्षर के अनंत बिंदुओं में बिखरता है

बार बार देखता हूँ
एक बड़ा शहर
बहुत बड़ा अँधेरा
छोटा बच्चा खोया हुआ।


रचनाकार : लाल्टू
            

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