कवि कविता नहीं लिखता,
प्रशस्ति पत्र पाने को।
कवि कविता नहीं लिखता,
सिंहासन छत्र पाने को।
नहीं वह चाहता, कोई,
उर माला करे अर्पित।
नहीं वह चाहता कोई,
करे कर ताल से झंकृत।
नहीं वह चाहता, कोई,
उसे कुछ पारितोषिक दे।
नहीं वह चाहता कोई,
उसे संज्ञा औपलेशिक दे।
नहीं वह चाहता, उसकी,
क़लम बिक जाए कुछ धन से।
नहीं वह चाहता, उसकी,
वो कविता जुड़े बंधन से।
कवि लिखता है एक कविता,
नवल संदेश देने को।
स्वयं से हार जो बैठे,
उन्हें उपदेश देने को।
खड़े जो पंक्ति अंतिम हैं,
हुआ जिनका यहाँ शोषण।
दबे हैं स्वर यहाँ जिनके,
छीना है गया पोषण।
है कविता चाहती इतना,
जगें वो कँपकपाते स्वर।
जो भर दे जोश साहस का,
मौन से खुल जाएँ अधर।
बनें हर शब्द जागृत के
बने कविता यहाँ नारा।
छुए वो तट हृदय के ही,
बने कविता नवल धारा।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें