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कवि हूँ कविता लिखता हूँ (कविता)

हाँ! मैं कवि हूँ
कविता लिखता हूँ,
सत्य से दो चार हो
शब्दों से लड़ता झगड़ता हूँ,
मन में जो भाव उठे
उसे काग़ज़ पर उतार देता हूँ।
ख़ुद से लेकर आप तक
पड़ोसियों से लेकर संसार तक
सरहदों की कठिनाईयों से लेकर
आकाश की ऊँचाइयों तक
पाताल की गहराइयों तक
मज़दूर, किसान, विद्यार्थी की पीड़ा
बेरोज़गारी का दंश, आमजन की वेदना
शासन प्रशासन तक में ताक झाँक भी
आख़िर कर ही लेता हूँ
कवि हूँ कविता लिखता हूँ।
अपराध और अपराधी तक
न्याय और अन्याय तक
सदाचार, अनाचार, भ्रष्टाचार लिखता हूँ
नीति अनीति की बात करता हूँ
धर्म जाति मज़हब की बात भला कैसे भूलूँ
हिंदू मुसलमान में संदेह, वैमनस्य पर
हिंसा, बवाल, देशद्रोही गतिविधियों पर भी
खुलकर अपनी सोच लिखता हूँ
जो जीते, खाते, सुविधा लेते अपने देश में
पर देश तोड़ने की कोशिशें करते
उन बहुरुपिए भेड़ियों की खाल उतारता हूँ।
लिखना मेरा शौक़ है, जुनून है
इसलिए लिखता हूँ
सत्य से मुँह मोड़ नहीं पाता
दोगली राजनीति का चीरहरण करता हूँ,
इसलिए गालियाँ भी सहता हूँ
धमकियों से जूझता हूँ
फ़तवा झेलता, जान भी देता हूँ
पर कवि धर्म से पीछे नहीं हटता हूँ
क्योंकि कवि हूँ कविता ही तो करता हूँ
शब्दों के तालमेल और सम्मान में
हरदम जूझता रहता हूँ
कवि धर्म का पालन ईमानदारी से करता हूँ।


लेखन तिथि : 7 जून, 2022
            

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