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कवि और कल्पना (कविता) Editior's Choice

कल्पने उदासिनी—
न मेघदूत वेश में
किसी सुदूर देश में
किसी निराश यक्ष का प्रणय-संदेश ला रही
न आज स्वप्न में सने
मृणाल तंतु से बने
किसी असीम सत्य के रहस्य गीत गा रही
आज तक उदास यों कभी दिखी न रूप-सी
सफ़ेद बर्फ़ पर बिछी मलीन खिन्न धूप-सी।

गीत खो गए कहाँ
छंद सो गए कहाँ
कहाँ गए सँगीत के सजीव स्वर सुभाषिनी?
कल्पने उदासिनी।

कल्पना उदासिनी
ने मलीन छोर से
उदास नेत्र कोर से
अश्रु बूँद पोंछ कर कहा कि मैं ग़ुलाम हूँ
स्वतंत्र रश्मि पर पली
स्वतंत्र वायु में चली
मगर सदा यही दरद रहा कि मैं ग़ुलाम हूँ।

ग़ुलाम कल्पना कभी न जोत बन निखर सकी
न प्यास की पुकार पर ओस बन उतर सकी
देखती रही हताश कल्पना उदासिनी
जवान फूल झर गए।
जवान गीत मर गए।
ग़ुलाम देश में मगर
किसी जवान लाश पर
निरीह शोक का कफ़न तानना गुनाह है।
अश्रु-हास भी मना
भूख-प्यास भी मना
यहाँ मनुष्य को मनुष्य मानना गुनाह है!
यहाँ सदा बँधी रही कल्पना हताशिनी।
बंदिनी निराशिनी।

कल्पने निराशिनी
मगर सुनो नवीन स्वर
सुनो-सुनो नवीन स्वर
विशाल वक्ष ठोंक कर
सुदूर भूमि से तुम्हें जवान कवि पुकारता
लौट बँधन तोड़ कर
बेड़ियाँ इँझोड़ कर
नवीन राष्ट्र की नवीन कल्पना सँवारता।

स्वतंत्र क्रांति ज्वाल में निडर बनो सुकेशिनी
विनाश की सजीव नग्नता ढँको सुतेशिनी
विनाश से डरो नहीं
विकास से डरो नहीं
सृष्टि के लिए बनो प्रथम विनाश स्वामिनी—
कल्पने विलासिनी!


            

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