असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।
चेहरे-चेहरे से फ़रेबी कर रहा है,
हर रिश्ते में छलावा हो रहा है,
जान कर भी अनजान बने हैं हम।
क्यों कि,
असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।।
घर-घर में चोरी हो रही है,
हर मोड़ पर लुट हो रही है,
फ़रियाद करे तो किससे करे हम।
क्यों कि,
असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।।
पल-पल में बोली लग रही है,
रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं,
शासक चुने तो किसे चुने हम।
क्यों कि,
असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।।
अपनो से भरोसा उठ रहा है,
हर सच्चा भी झूठा लग रहा है,
विश्वास करें तो किस पर करें हम।
क्यों कि,
असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।।
आदमी-आदमी का हनन कर रहा है,
ऊँच-नीच का व्यवहार जानवर बना रहा है,
क्रूरता का समाधान पाएँ तो कहाँ पाएँ हम।
क्यों कि,
असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।।
ज्ञान-विज्ञान कि अवहेलना हो रही है,
बहुमुल्य शोधों की चोरी हो रही है,
देश को महान बनाए तो कैसे बनाए हम।
क्यों कि,
असत्य, हिंसा और भ्रष्टों की टोली में,
कौन सुनेगा मेरी बात।।
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