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काल्पनिक समाज (लघुकथा)

सारी कालोनी के लोग यह जानते थे कि वह परिवार बहुत ही सुसभ्य और सुसंस्कृत है। यह सब देखकर उनके परिवार के प्रति मेरी जिज्ञासा बढ़ी।
मैंने देखा- बहू रोज़ सुबह सास-ससुर का आशीर्वाद लेकर अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती है।
मैंने देखा- घर की सुख-शांति में सभी का बराबर का सहयोग रहता है।
मैंने देखा- मानवता उनमें कूट-कूट कर भरी है।
मैंने देखा- वे असहाय लोगों की सहर्ष मदद करते हैं।
मैंने देखा- कोई ग़रीब या भिखारी उनके दरवाज़े से भूखा नहीं जा सकता।
मैंने देखा- वे मंदिर और अनाथालय में भी दान-धर्म करते हैं।

मैंने सोचा कि परिवार तो देश की इकाई होता है। यदि सभी ऐसे हो जाएँ तो देश में दूध की नदियाँ बह निकलेंगी और यह देश सोने की चिड़िया कहलाने लगेगा।
अचानक दिमाग को एक तीव्र झटका लगा और मेरे सोचने की दिशा बदल गई।
मैं सोचने लगा- ऐसा तो काल्पनिक समाज में ही हो सकता है।
मैं बड़ी असमंजस की स्थिति में हो गया और आगे कुछ सोच नहीं पा रहा था।


लेखन तिथि : 2019
            

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