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काँटों को ताज (नवगीत)

फूलों को घाव मिले
काँटों को ताज।

पुष्पित पल्लवित
हो गया फ़रेब।
अब विशेष गुण
हो गया है ऐब।।

पंछी भी भूल गए
भरना परवाज़।

मँझधार में
फँसने लगी नाव।
जीवन में आ
गया है बिखराव।।

सपनों के माँडव पर
गिरती है गाज।

ख़ुशियों की महफ़िलें
ग़मगीन हैं।
मावस की रातें
क्यों हसीन हैं।।

पड़ती है खोखली
सुरीली आवाज़।


लेखन तिथि : 21 सितम्बर, 2021
            

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