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कालिख अँधेरों की (नवगीत)

चेहरे पर रातों के
कालिख अँधेरों की।

आँगन में उतरे हैं
धूप के पखेरू।
उम्र ढली उड़ जाते
रूप के पखेरू।।

आई याद मेड़ों पर
खट-मिट्ठे बेरों की।

मधुऋतु फ़सलों के
रंगों को चूम गई।
अमराई में हवा-
बसंती झूम गई।।

पिटारी राज़ खोलती
साँप की-सँपेरों की।


  • विषय :
लेखन तिथि : 12 फ़रवरी, 2022
            

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