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ज्येष्ठ महात्म (कविता)

तीसरा माह ज्येष्ठ का आया,
सूरज ने रौद्र रूप दिखलाया।
धरती के कण-कण को गरमाया,
सबका हाल बेहाल कराया।
छाया भी अब माँग रही है छाया,
सूख रही है जल की काया।
सूख गए नदिया पोखर,
सूख गए सब ताल-तलैया।
कुआँ हैण्डपम्प को तो,
अब मत पूँछो भइया।
दोपहरी में लू बन गई है ख़ूनी,
सड़कें सब हो गईं हैं सूनी।
बूढ़े, बुज़ुर्ग सयानों ने बतलाया,
ये है सब मृगशिरा की माया।
जितना मृगशिरा का ताप बढ़ेगा,
उतना ही बारिश का आधार बढ़ेगा।
पशु-पक्षी चिड़ियों को पानी दाना दो,
अपनी मानवता को खिलने दो।
खीरा ककड़ी तरबूजा खाओ,
गर्मी को तुम दूर भगाओ।
दिन में पीओ बेल का शर्बत,
मौसम जब तक न लेले करवट।
भूषण ज्येष्ठ नहीं है किसी का दुश्मन,
ख़ुद तपकर देता औरों को नवजीवन।
तपकर बादल ख़ूब बनाता है,
फिर धरती पर वर्षा करवाता है।


लेखन तिथि : 25 मई, 2022
            

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