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जीवन तो इक अफ़साना है (ग़ज़ल)

जीवन तो इक अफ़साना है,
मानव का फ़र्ज़ निभाना है।

चाकू, कट्टा और कटारी,
इन सबका पोषक थाना है।

बूढ़ों का ज्ञान लगा अद्भुत,
क्या वो भी एक ज़माना है।

घर में जिसने विद्रोह किया,
उसका कुछ ठौर ठिकाना है।

दाने-दाने को तरसा जो,
भूख वही तो पहचाना है।


लेखन तिथि : 15 नवम्बर, 2021
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती : 22 22 22 22
            

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