जीवन में साहित्य ज़रूरी,
वैविध्यता के साथ ज़रूरी।
सतत एकरस लेखन से,
ज्ञान-विकास में आती दूरी।।
बीज अंकुरित करती धरती,
शनैः शनैः नवाचार बढ़ाती।
पेड़ों की लता-शाखाएँ,
फल-फूलों से लद जाती।।
संवेदना जब मन छू लेती,
अद्भुत रचनाएँ लिख जाती।
आशा के पुष्प सी कोमल,
कली-कली खिल जाती।।
पथ राहों के कंटक में से,
धाराएँ नित राह बनाती।
अपने पावन शीतल जल से,
धरा हरित उपजाऊ बनाती।।
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