देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

जीवन-धारा (गीत)

तू बिखर गई जीवन-धारा
हम फिर से तुझे समेट चले।
हम फिर से... 2

मैं रोई थी घबड़ाई थी,
उठ-उठ कर फिर गिर जाती थी।
तू नागिन जैसी डसती थी,
कितना मुझको डरवाती थी।

तू डाल-डाल हम पात चले,
हम फिर से तुझे समेट चले।
तू बिखर गई... 2

विपरीत दिशा का भंवरजाल,
नयनों से अविरल अश्रुमाल।
दुःखों का जैसे मकड़जाल,
जीवन जैसे था इक सवाल।

प्रतिक्षण तड़पे दिन-रात जले,
हम फिर भी तुझे समेट चले।
तू बिखर गई... 2

प्रियतम का उर में मधुर वास,
महसूस किया हर स्वांस-स्वांस।
समझा उनको बस सदा पास,
अंतर के तम में जगा आस।

फिर वीर पिता से प्रेरित हो,
हम वीर सुता बनकर निकले।
तू बिखर गई जीवनधारा,
हम फिर से तुझे समेट चले।
हम फिर से... 2


लेखन तिथि : 10 जनवरी, 2019
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें