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जन्मदिन और केक (कविता)

जन्मदिन शुभकामना का मर्म समझ नहीं आया।
शुभचिंतको, परिचितो का संदेश समझ न आया।
घट रही है ज़िंदगी,
ख़ुशी का अतिरेक क्यों?
मुझे बर्थ-डे-केक का प्रचलन समझ नहीं आया।।

नाम लिख मोमबत्ती जलाई चॉकलेटी केक पर।
क्यूँ चलाई फिर छुरी?
क्यूँ बुझाई मोमबत्तियाँ?
ग़ुलामी की ज़ंजीर टूटी,
न टूटी मन की दासता।
बहुत सोचा पर ये आंग्ल दस्तूर समझ न आया।।

जन्मोत्सव पर केक प्रथा,
बेरुख़ी यज्ञ-हवन एंव कथा।
कृष्णोत्सव के देश में,
केक समझ नहीं आया।
जन्मदिन शुभकामना का मर्म समझ नहीं आया।
शुभचिंतको परिचितो का शुभ संदेश समझ न आया।।


लेखन तिथि : 9 मार्च, 2017
            

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